Monday, December 13, 2010

एक आज़ाद परिंदा हूँ



तिनके सा मेरा ये जहां,
उड़के मैं जाऊं और कहाँ
तू है तो मेरा सब कुछ है
तेरे साए में जिंदा हूँ
इस खुले आसमाँ में जैसे,
एक आज़ाद परिंदा हूँ

तेरे आगे मैं कुछ भी नहीं
दुनिया ये तुझसे चलती है
तेरी दुआएं साथ रहें तो,
मेरी ये खुशियाँ पलती हैं
अपनी हर गुस्ताखी पर
मैं बेहद शर्मिंदा हूँ
इस खुले आसमाँ में जैसे,
एक आज़ाद परिंदा हूँ

शाम के ढलते मैं आ जाऊं
यह मेरी कोशिश रहती है,
अपने पर मैं वहाँ पसारू
जिस ओर हवा ये बहती है ।
लौट के मैं जो न आ पाऊं
तू ऐसे क्यों रोता है,
ऐसे जैसे कि कोई,
अपने किसी को खोता है
बिछड़ के तुझसे मैं तुझे रुलाऊं,
ऐसा न मैं दरिंदा हूँ
इस खुले आसमाँ में जैसे,
एक आज़ाद परिंदा हूँ