Tuesday, August 21, 2012

न तू लौट के आएगा

The whole poem is about time. If we respect it, we are the winner and if we don't care, we are the ultimate loser. 

जब पास तू मेरे होता है 
मैं खुशकिस्मत सा रहता हूँ 
तू है अब मेरी मुट्ठी में 
इसी सोच में बहता हूँ 
तुझको कोई भी रोक न पाया 
अपनी रफ़्तार से चलता है  
निकल गया जो हाथ से तो 
बेबस ये हाथ ही मलता है 
तू जो मेरे साथ में होता 
सारा जहां ये मेरा होता 
पर न तू लौट के आएगा 
न तू लौट के आएगा 

तू अपनी मर्ज़ी का मालिक 
तुझपे किसी का ज़ोर नहीं 
तुझसे ही दुनिया चलती है 
पर तेरा कोई छोर नहीं 
बंद मुठी में रेत के जैसा 
हाथों में तू रहता है 
जब फिसल गया तू हाथ से मेरे 
फिर मुझसे ये कहता है 
तू मेरी परवाह करे पर 
न मुझको परवाह कोई 
जब भी मैं तुझसे दूर गया 
तेरी आँखें अक्सर रोयी  
तू जो मेरे हाथ में होता 
मैं न अपनी हार पे रोता 
पर न तू लौट के आएगा 
न तू लौट के आएगा 



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