Thursday, November 07, 2013

फिर लौट के वापस आउंगा

अश्क़ों में डूबे घर से ख़त
मुझसे मिलने की इक आफ़त
छोटी बहना की हर एक शरारत
और होली पे मुझे रंगने की आदत
हर एक ने ज़िक्र किया यही
हर एक ने फिक्र किया यही
कि क्या मैं यहाँ सलामत हूँ

हर ज़िक्र को मैं फ़िर सुनकर 
हर फ़िक्र को करके दर-किनार  
छुपा के अपनी हर मजबूरी 
और पोंछ के आँसू फिर अपने 
करता सबसे झूठा वादा कि 

रंगने होली की रंगत में  
फिर लौट के वापस आउंगा

घर पे बैठी उस माँ को भी
पता है कि मैं न आउंगा
जो वो नाराज़ हो झूठ से मेरे
उसे हर मजबूरी बताऊंगा
इस माँ का दिल तो टूट गया
उस माँ कि लाज बचाने में
पिता को मेरे गर्व है मुझपे
ग़म है उन्हें मेरे न आने में

ताकि उन दिलों को जोड़ सकूँ 
और हर नाराज़गी तोड़ सकूँ 
देता हूँ दिलासा दिवाली का 
और फिर उन सब से कहता हूँ 

रौशन करने अपने घर को 
फिर लौट के वापस आउंगा


जैसे कि उनको पता था
कि मैं न फिर आ पाउँगा
वो हो गए नाराज़ मुझसे
सोचे मैं उन्हें मनाऊंगा
पर उनको है न पता
कि मैं किस हाल में हूँ यहाँ
मैं लड़ रहा हूँ इस सरहद पे
जीते हर पहर ही मौत जहाँ

उनका भी कहना ज़ायज है
उनसे मिले हुआ एक अरसा 
अपने हर फ़र्ज़ को निभा लिया
फिर भी मैं उनके साथ को तरसा 

पर मैंने ये तयं है किया
कि चाहे मुझको अब मौत मिले 
 पर लिपटा हुआ तिरंगे में 
फिर लौट के वापस आउंगा 

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